RSS Bodh Katha : 5 आरएसएस नैतिक हिंदी कहानियाँ एवं बोध कथाएँ
इस ब्लॉग में, हमारे पास Motivational bodh katha in hindi में बच्चों के लिए नैतिक कहानियों (Best Hindi Stories for Kids) की एक सूची है और हम आपको बताते हैं कि आरएसएस नैतिक हिंदी कहानियाँ | आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi | bodh katha in hindi with moral | आपके बच्चे को नैतिक मूल्यों को प्राप्त करने में क्यों मदद करती हैं। जीवन मार्गदर्शन करने वाली आध्यात्मिक और नैतिक कथाएं |
Sangh Bodh Katha मानसिक स्थिरता
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #1
लोकमान्य तिलक की भगवद्गीता के प्रति बहुत श्रद्धा थी। जब वे मांडले जेल में रहे, तब उन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक भी लिखी थी; पर यह उससे पहले की घटना है। वे अपने अन्य कार्य करते हुए ‘केसरी’ नामक समाचार पत्र का सम्पादन भी करते थे। एक बार उनका पुत्र बहुत बीमार था, उसकी देखभाल करते भी वे अखबार का काम करते रहे। एक दिन जब वे कार्यालय में बैठे काम कर रहे थे, तो घर से सूचना आयी कि बेटे की तबियत बहुत खराब हो गयी है, जल्दी आइये।
उन्होंने उत्तर भिजवाया कि मैं काम पूरा करके आता हूँ। तब तक चिकित्सक को बुलवा लें, क्योंकि दवा तो वह ही देगा। इसके बाद वे सम्पादकीय लिखने लगे और उसे पूरा करके ही घर गये। घर जाकर पता लगा कि बेटे ने प्राण छोड़ दिये हैं। उन्होंने इसे ईश्वर की इच्छा मानकर शान्त मन से उसका अंतिम संस्कार कर दिया।
यह थी ध्येय के प्रति उनकी दृढ़ता और मानसिक स्थिरता। गीता में ऐसे व्यक्ति को ही भगवान कृष्ण ने ‘स्थितप्रज्ञ’ कहा है।
Sangh Bodh Katha – सबसे बड़ा मानव-धर्म
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #2
जब तक हमारे मन में मानवमात्र के लिए प्रेम नहीं होगा, तब तक सामाजिक कार्य संभव नहीं है। यह समझाने के लिए श्री गुरुजी एक बहुप्रचलित
कथा सुनाते थे।
एक नदी में एक साधु बाबा नहा रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि एक बिच्छू नदी के तेज बहाव के साथ बह रहा है। साधु ने सोचा कि यदि इसे बाहर
न निकाला गया, तो यह नदी में डूबकर मर जाएगा। अतः उन्होंने अपना हाथ पानी में डालकर बिच्छू को उठा लिया। पर बिच्छू जैसे ही पानी से निकला, उसने साधु के हाथ पर डंक मार दिया।
डंक लगते ही बाबा का हाथ काँपा और बिच्छू फिर नदी में जा गिरा। यह देखकर बाबा ने उसे फिर उठाया; पर बिच्छू ने फिर डंक मार दिया।
जब यह क्रियां तीन-चार बार हो गयी, तो निकट ही स्नान कर रहा एक अन्य व्यक्ति बोला बाबा जी, आप देखने में तो बहुत ज्ञानी लगते हैं; पर यह
नहीं जानते कि बिच्छू का स्वभाव ही डंक मारना है। फिर भी आप उसे बार-बार पानी से बाहर निकाल रहे हैं।
साधु बाबा ने कहा मैं बिच्छू का स्वभाव अच्छी तरह जानता हूँ। वह पानी में डूब रहा है, फिर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा। इसी तरह डूबते को बचाना मेरा स्वभाव है। यदि वह बिच्छू होकर अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा, तो मैं साधु होकर अपना स्वभाव क्यों छोडूं ?
यह कथा सुनाकर श्री गुरुजी बताते थे कि समाज का कार्य करते समय लोग अपने स्वभाव के अनुसार तरह-तरह की बातें कहेंगे। कई लोग प्रताड़ित भी करेंगे। पर हमें अपना सेवा का स्वभाव एवं प्रेमभाव नहीं छोड़ना है। तभी हमें सफलता मिलेगी।
Sangh Bodh Katha – कमजोर के सब सब दुश्मन
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #3
किसी भी व्यक्ति और समाज को शक्तिशाली क्यों होना चाहिए, इस संबंध में श्री गुरुजी ब्रह्मा और मेमने वाली कथा सुनाते थे।
एक बार एक मेमना ब्रह्मा जी के पास गया और रो-रोकर अपनी व्यथा बताने लगा। वह बोला, महाराज, आप इस सृष्टि के निर्माता हैं। आपने सब जीवों को बनाते समय प्रत्येक को सुरक्षा के लिए कुछ साधन दिये हैं। किसी को नाखून दिये हैं, तो किसी को सींग या दाँत। साँप के पास जहर है, इसलिए लोग उससे भी डरते हैं। पर हमें आपने ऐसी कोई चीज नहीं दी। इस कारण जो चाहे हमें मारकर खा जाता है।”
ब्रह्मा जी आँख बंदकर उसकी बात सुनते रहे। उन्हें मौन देखकर मेमने ने फिर कहा,कृपया बतायें कि आपने हमें इतना कमजोर क्यों बनाया ? यह हमारे साथ बहुत बड़ा अन्याय है। महाराज, कृपाकर इससे बचने का कोई मार्ग बतायें।”
इतना कह कर मेमना फिर रोने लगा।
ब्रह्मा जी ने कहा, पुत्र, तुम्हारा कहना ठीक ही है। यह मेरी भूल ही है कि तुम्हें इतना निर्बल और निःशस्त्र बनाया। पर अब तुम शीघ्र ही यहाँ से चले
जाओ। क्योंकि तुम्हें देखकर मेरा मन भी मचलने लगा है। ऐसा न हो कि मैं ही तुम्हें खा जाऊँ।”
यह कथा सुनाकर श्री गुरुजी बताते थे कि जिसके पास अपनी ताकत नहीं है, वह सदा प्रताड़ित ही किया जाता है।
Sangh Bodh Katha – अपना मन ठीक रखें
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #4
अनेक लोग सोचते हैं कि उन्होंने बहुत कुछ पढ़ और सीख लिया, बहुत अनुभव प्राप्त कर लिये। अब उन्हें और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं है। पर ऐसा व्यक्ति कब स्खलित हो जाएगा, कहा नहीं जा सकता। इसलिए अपने मन को सदा ठीक बनाये रखने के लिए प्रतिदिन प्रयास और अभ्यास करते रहना चाहिए।
इस संबंध में श्री गुरुजी रामकृष्ण परमहंस के गुरु श्रद्धेय तोतापुरी जी महाराज का एक संस्मरण सुनाते थे। एक बार परमहंस जी ने उनसे पूछा,
“गुरुजी, आपने तो इतनी साधना और आराधना की है। आपको ब्रह्म की प्राप्ति भी हो गयी है।
फिर अब आप प्रतिदिन आसन लगाकर क्यों बैठते हैं ? अब आपको पूजा-पाठ या अध्ययन की क्या आवश्यकता है ?”
तोतापुरी जी ने उत्तर दिया, ” अपने मन में कभी भी यह अभिमान नहीं आना चाहिए कि मैंने सब कुछ पा लिया। अपनी साधना प्रतिदिन नियमित रूप
से चलती रहनी चाहिए।”
उन्होंने अपने लोटे को दिखाते हुए कहा, “रामकृष्ण ! यह लोटा इतना साफ है कि तुम इसमें अपना मुँह देख सकते हो। मैं इसे प्रतिदिन रेत से रगड़कर
माँजता हूँ। यदि ऐसा न करूँ, तो इस पर दाग पड़ जायेंगे और इसका पानी भी पीने योग्य नहीं रहेगा।
इसी प्रकार अपने मन को भी साधना और आराधना से प्रतिदिन साफ करना चाहिए। मुझे अब कुछ करने की आवश्यकता नहीं, यह अभिमान व्यर्थ है।”
Sangh Bodh Katha – यह कैसी मुक्ति ?
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #5
कई बार लोग आपस के छोटे-छोटे मतभेदों में फँसकर इतने मूर्ख बन जाते हैं कि अपने भाई पर आने वाले संकट की भी अनदेखी कर जाते हैं। इसका
दुष्परिणाम आगे चलकर उन्हें स्वयं भी भोगना पड़ता है। इसे समझाने के लिए श्री गुरुजी गुजरात के सोमनाथ मंदिर के विध्वंस का उदाहरण देते थे।
सोमनाथ मंदिर की अतुल धन-सम्पत्ति के बारे में सुनकर महमूद गजनवी ने उस पर चढ़ाई करने की योजना बनायी। उसे पता था कि सोमनाथ पहुँचना आसान नहीं है। रास्ते में अनेक हिन्दू राज्य हैं, जिनकी सोमनाथ मंदिर के प्रति आस्था है। राजस्थान के निर्जन रेगिस्तान भी हैं, जिन्हें पार करना बहुत कठिन है। इस पर भी उसने अपना निश्चय नहीं त्यागा और सेना लेकर चल दिया ।
उसे यह पता था कि गुजरात राज्य के प्रति आसपास के राज्यों में कुछ नाराजगी है। उसने सभी राजाओं से कहा कि वह सोमनाथ को जीतकर उन्हें भी गुजरात शासन के साम्राज्यवादी पंजे से मुक्त करायेगा। राजाओं ने उसकी धूर्तता को न समझते हुए उसे सोमनाथ तक पहुँचने का सरल मार्ग बता दिया।
पर सोमनाथ को जीलकर महमूद गजनवी ने क्या किया ? उसने आसपास के राजाओं को भी लूटा। वहाँ के मंदिर और तीरथों को अपमानित किया और इस प्रकार गुजरात, सौराष्ट्र एवं राजस्थान को लम्बे समय तक एक विदेशी एवं विधर्मी साम्राज्य के पंजे की नीचे दबकर रहना पड़ा।
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