पिंजरे में बंद एक पक्षी की आत्मकथा | Autobiography Of A Bird In A Cage In Hindi
नमस्कार दोस्तों सुधबुध में आपका स्वागत है आज आप हिंदी निबंध और लेख Pinjare ke panchi ki atmakatha in hindi पढ़ेंगे. इस आत्मकथा में पिंजरे में कैद पक्षी का दर्द एक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया है. Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Pakshi ki Atmakatha”, ”पक्षी की आत्मकथा” Complete Hindi Nibandh for CBSE ICSE and State Boards Class 5,6,7, 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes Students के लिए है. तो आइये Lekh Pinjare ke panchi ki atmakatha पढ़ते हैं।
पक्षी की आत्मकथा | Pakshi ki Atmakatha
पिंजरे में बंद एक पक्षी की आत्मकथा | Autobiography Of A Bird In A Cage In Hindi : मैं पिंजरे में कैद एक पक्षी हूँ। इस बंधन से मुक्त होने के लिए छटपटाता रहता हूँ। मेरा जन्म इस पिंजरे में नहीं हुआ था। वन में एक वृक्ष पर मेरा जन्म हुआ था। दुर्भाग्यवश में अपने परिवार से बिछुड़ गया और आज इस पिंजरे में एक कैदी का जीवन बिता रहा हूँ। दिन-रात मैं इस पिंजरे से आजाद होने के सपने देखता हूँ।
जब मैं बहुत छोटा था और मैंने उड़ना नहीं सीखा था, तब मैं अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ घोंसले में रहता था। मेरे माता-पिता मेरी और मेरे भाई-बहनों की प्यार से देखभाल करते थे। दोनों मेरे लिए दाना और फल लेकर आते और बड़े प्रेम से खिलाते थे। पता नहीं, वे आनंद भरे पल कब बीत गए।
एक दिन जब मेरे माता-पिता दाने की तलाश में गए हए थे, तब वहाँ एक बहेलिया आया। उसके पास जाल था। उसका चेहरा बड़ा डरावना था। मैं और मेरे भाई-बहन उसे देखकर डर के मारे छिप गए। बहेलिया बड़ी देर तक पेड़ों पर बने घोंसलों की ओर देखता रहा। फिर वह हमारे पेड़ पर चढ़ गया और घोंसलों में बैठे पक्षियों के बच्चों को पकड़ पकड़ कर थैले में डालने लगा। पक्षी जोर-जोर से शोर मचा रहे थे, परंतु सब व्यर्थ गया। उसने मेरे घोंसले की और भी हाथ बढ़ाया और अपने कठोर हाथों से मुझे पकड़ लिया।
उसके हाथों से आजाद होने के लिए मैं बहुत छटपटाया, परंतु उसने मुझे दबोच लिया और थैले में अन्य पंछियों के साथ डाल दिया। वहाँ बहुत अँधेरा था। हवा की कमी के कारण मेरा दम घुट रहा था। बहेलिये ने अपने घर पहुँचकर हमें छोटे-छोटे पिंजरों में बंद कर दिया। रात भर से हम सब भूखे थे। उसने हमें पिंजरे में ही दाना-पानी दे दिया। न चाहते हुए भी हमने थोड़ा-थोड़ा दाना खा लिया। मन किसी भयानक आशंका से काँप-काँप जाता था।
अगले दिन सभी पिंजरे लेकर वह बाजार पहुँच गया। यह पक्षियों का बाजार था। वहाँ चारों ओर पिंजरों में बंद पक्षी दिखाई दे रहे थे। बाजार में तरह-तरह के लोग आ रहे थे
और पंछियों का मोल-भाव कर उन्हें खरीदकर ले जा रहे थे। एक आदमी ने मुझे भी खरीद लिया और अपने घर ले आया। घर लाकर उसने मुझे अपनी छोटी बेटी को दे दिया।
मुझे देखते ही उस बच्ची की आँखें चमक उठीं। वह खुशी से नाचने लगी। उसने मेरा नाम ‘मिठू’ रख दिया। मेरा मालिक और उसकी बेटी मुझे बहुत स्नेह से पाल रहे हैं। वे मेरे खाने-पीने और साफ़-सफ़ाई का बहुत ध्यान रखते परंतु परतंत्रता सबसे बड़ा दुख है। काश! मेरी इस व्यथा को मनुष्य समझ पाते कि उनकी भाँति हम पक्षी भी स्वतंत्र रहना चाहते हैं। हमें पिंजरे में बंद करके वे हमारे परों को ना काटें। हमें स्वच्छंद आकाश में उड़ने दें। हमारी एक ही कामना है
“नीड़ न दो चाहे टहनी का, आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं तो, आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।”
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