प्रेरक कथा: आलस्य मनुष्य का शत्रु

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प्रेरक कथा:आलस्य की वजह से सुनहरा अवसर भी हाथ से निकल जाता है, इस बुरी आदत को आज ही त्याग दें

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प्रेरक कथा: आलस्य मनुष्य का शत्रु

लोक कथा के अनुसार पुराने समय में किसी आश्रम में गुरु अपने एक शिष्य के साथ रहते थे। गुरु बहुत विद्वान थे। आसपास के लोग उनके प्रवचन सुनने आते थे। उनका शिष्य बहुत आलसी था। इस वजह से गुरु को शिष्य के भविष्य को लेकर चिंता रहती थी।

शिष्य की शिक्षा पूरी होने वाली थी, लेकिन वह अभी तक समय का मूल्य नहीं समझ सका था। वह किसी भी काम को टालते रहता था। गुरु ने सोचा कि शिष्य को समय का महत्व नहीं समझाया तो इसका जीवन बर्बाद हो सकता है।

एक दिन गुरु ने आलसी शिष्य को एक पत्थर देते हुए कहा कि ये पारस पत्थर है। इससे तुम जितना चाहो, उतना सोना बना सकते हो, लेकिन तुम्हारे पास सिर्फ दो ही दिन हैं। इससे तुम्हारा भविष्य सुधर सकता है। मैं दूसरे गांव जा रहा हूं, दो दिन बाद आश्रम लौट आऊंगा, तब मैं तुमसे ये पत्थर मैं वापस ले लूंगा। इस पत्थर से तुम लोहे की जिस चीज से स्पर्श करोगे, वह सोने की हो जाएगी।

चमत्कारी पत्थर देकर संत आश्रम से निकल गए। आलसी शिष्य बहुत खुश था। उसने सोचा कि मैं इस पत्थर से इतना सोना बना लूंगा कि मेरा पूरा जीवन ऐश और आराम से व्यतीत हो जाएगा।

उसने विचार किया कि अभी तो मेरे पास दो दिन हैं, एक दिन आराम कर लेता हूं। अगले दिन सोना बना लूंगा। ये सोचकर वह सो गया। पूरा दिन और पूरी रात सोने के बाद जब वह उठा तो उसने योजना बनाई कि आज बहुत सारा लोहा लेकर आना है और उसे सोना बनाना है।

आश्रम से बाहर जाने से पहले वह खाना खाने बैठ गया। पेटभर खाना खाया तो उसे नींद आने लगी। अब वह सोचने लगा कि कुछ देर सो लेता हूं, सोना बनाने का काम तो छोटा है, शाम को कर लूंगा। लेटते ही उसे नींद आ गई। वह गहरी नींद में था। उसे मालूम भी चला और सूर्यास्त हो गया।

दिन खत्म होते ही गुरु आश्रम में लौट आए। गुरु ने शिष्य से वह पत्थर वापस ले लिया। अब शिष्य को इस बात अहसास हो गया कि आलस्य की वजह से उसने सुनहरा अवसर खो दिया है। शिष्य ने गुरु के सामने संकल्प लिया कि अब से वह कभी भी समय को बर्बाद नहीं करेगा और आलस्य को त्याग देगा। इसके बाद शिष्य का जीवन बदल चुका था। वह मेहनत करने लगा था और जल्दी ही उसने अपनी मेहनत से धन कमाना भी शुरू कर दिया।

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