How to Raise Smart Kids – अध्यापक पढ़ाई संग बच्चों की मौलिक प्रतिभा भी तराशें
Raising a Brilliant Child: दुनिया का हर बच्चा विलक्षण और विशिष्ट है। प्रकृति का कमाल देखिए कि कोई भी दो बच्चे अक्ल, शक्ल, रुचियों व आदतों के मामले में एक से नहीं होते हैं। बच्चों में व्यक्तिगत भिन्नता और विविधता ही सुन्दरता का स्रोत है। यदि सभी बच्चे एक से हो जाएं तो हम सोच सकते हैं कि हमारा समाज, कैसा दिखेगा। अध्यापक का काम इसी विलक्षणता और अनोखेपन की पहचान करना होता है।
अध्यापक बच्चों को संवेदनशील वातावरण प्रदान करता है. जिसमें बच्चे मिल कर खेलते-सीखते हैं और साथ ही उनका अनोखापन भी अभिव्यक्ति पाता है। वह विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के जरिये कई विकल्प देता है। कोई बच्चा अपनी रुचि के अनुसार किसी खास तरह की क्रियाओं में अधिक हिस्सा लेता है और किसी गतिविधि के प्रति पूरी तरह से उदासीन भी हो सकता है। इससे उसके रुझान और अभिरुचियों का पता चलता है। अध्यापक उसे उस क्षेत्र में अधिक मेहनत करने के लिए मौके प्रदान करता है, जिसमें उसका मन रमता है।
उम्मीदों के बोझ की चुनौती
भौतिकता के चंगुल में फंसे अभिभावक बच्चों के कन्धों पर अपनी अनेक प्रकार की महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ लाद देते हैं। उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चों पर चिकित्सक, अभियन्ता व बड़ा अधिकारी बनने का बहुत दबाव है। विद्यालय से आकर बहुत से बच्चे ट्यूशन पढ़ने के लिए चले जाते हैं। बाद में उन्हें गृहकार्य करना होता है।
विकास की योजना
अध्यापक का कार्य बच्चे की दिलचस्पियों की पहचान करने के बाद उसके विकास की योजना बनाना होता है। वह मछली को पेड़ पर चढ़ने के लिए नहीं कहता है। बन्दर को तैरने का काम नहीं देता। दरअसल, अध्यापक का सबसे अहम कार्य पहचान करना है। दुनिया का कोई बच्चा गीली मिट्टी नहीं, जिसे अध्यापक को आकार देना है दुनिया का कोई बच्चा कोरी स्लेट नहीं, जिस पर अध्यापक जो मन आए लिख दे जब बच्चा स्कूल में पहुंचता है तो वह बहुत कुछ अपने साथ लेकर आता है। हर बच्चे का अपना स्वभाव व प्रकृति है। हमें बच्चों पर अपनी चीजें थोंपनी नहीं हैं।
सवालों के जवाब तलाशने सिखाना
अकसर देखने में आता है कि बच्चों के सहज-सरल सवालों की उपेक्षा होती है। नन्हा बच्चा सवालों से भरा होता है। लेकिन हम सवालों पर चर्चा करने की बजाय उसकी जिज्ञासु वृत्ति को दबा देते हैं। एक अच्छा अध्यापक बच्चों के सवालों से दो- चार होता है। उन पर खुले मन से चर्चा करता है। वह बच्चों की जिज्ञासा को उनके विकास का माध्यम मानता है।
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बच्चों को बने- बनाए उत्तर रटवाना अध्यापन नहीं है बल्कि सवालों के जरिये खुद उत्तर तलाशने सिखाना शिक्षण है। बड़ों को उपदेशक बनकर अपने आपको बच्चों को सिखाने वाला नहीं मानना चाहिए। बच्चे कूड़ेदान नहीं हैं, कि जो चाहे उसमें कुछ भी डाल दे। बच्चे खाली डिब्बा नहीं हैं कि उनमें कुछ भी भर दिया जाए और उसे शिक्षा कह दिया जाए। बच्चों की क्षमताओं को मंच देना होता है। उसकी प्रतिभाओं को निकालना होता है। अध्यापक का कार्य चंतन से भरपूर है। बच्चों की कल्पनाशीलता, विचारशीलता, तर्कशीलता, चनाशीलता का विकास तभी होता है, जब उसे अध्यापक माहौल दान करता है।
ज्ञान को रसमय बनाने की कला
अध्यापक माँ की तरह बच्चों के प्रति स्नेह व ममता रखता है। मधुमक्खी की तरह से यह अलग-अलग स्थानों से रस एकत्रित करता है और उससे शहद का निर्माण करके बच्चों को परोसता है। अध्यापक कुम्हार की तरह होता है, जो अन्दर से हाथ लगाता है और बाहर से प्यार भरी थपकी देता है। अध्यापक एक कलाकार होता है, जोकि विभिन्न मुद्राओं, संगीत व किस्से-कहानियों के माध्यम से बच्चों को आनन्दित करते हुए सिखाता है। वह ज्ञान को कुनैन की तरह से कड़वा नहीं रहने देता। वह सीखने- सिखाने की प्रक्रिया को रसीला बना देता है। अध्यापक मनोवैज्ञानिक की तरह से बच्चों के मन-मस्तिष्क में उठने वाली उथल-पुथल को समझ कर कार्य करता है।