देसी और विदेशी गाय अन्तर
हाल के वर्षों में देश-विदेश में इस मसले पर कई अध्ययन हुए हैं। जिनसे पता चलता है कि गाय की दो विदेशी नस्लें हैं, जर्सी और होल्स्टीन। ये मात्रा में दूध भले ही ज्यादा देती हैं, पर वास्तव में इनके उत्पाद फायदे की बजाय नुकसानदेह ज्यादा हैं। कई अध्ययन तो इन्हें गाय मानने तक को तैयार नहीं हैं। यह अपने मूल रूप में यूरोप का उरूस नामक जंगली जानवर था, जिसका कि यूरोपीय लोग शिकार किया करते थे। चूंकि जंगली जानवर होने के नाते शिकार करना मुश्किल होता था, इसलिए कई जानवरों के साथ इसका प्रजनन करवाया गया। अंत में देसी गाय के साथ प्रजनन के बाद जर्सी प्रजाति का विकास हुआ।
गाय की विदेशी नस्लों के नाम
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जर्सी – इस नस्ल का मूल स्थान जर्सी द्वीप है |
ब्राउन स्विस- इनका मूल स्थान स्विटजरलैण्ड है | हौल्सटी– फ्रीजियन-मूल रूप से नीदर लैण्ड में पायी जाने वाली नस्ल |
जर्सी गाय के दूध के फायदे और नुकसान
पर क्या वास्तव में विदेशी गाय का दूध भी उतना ही फायदेमंद है? अध्ययन बताते हैं- नहीं। यूरोप में इनके दूध को सीधे-सीधे पीने योग्य नहीं समझा जाता है। यानी ट्रीट करने के बाद ही बाजार में भेजा जाता है। इसके दूध में कैसोमोर्फीन नामक एक रसायन पाया जाता है, जो एक तरह का धीमा जहर है। जिससे उच्च रक्तचाप सहित मन की कई बीमारियां होने का खतरा रहता है। इसकी एक वजह यह भी है कि भारत में क्रॉस ब्रीडिंग यानी संकरन की प्रक्रिया भी अवैज्ञानिक और असंतुलित है। हमारे किसान और पशुपालक इसके नुकसानों के प्रति बिलकुल भी जागरूक नहीं हैं। उन्हें दूध की अधिक मात्रा के सब्जबाग ही दिखाए जाते हैं। इसलिए देश भर में बड़ी तेजी के साथ गाय की देसी नस्लें खत्म हो रही हैं। वर्ष 2012 में हुई पशुगणना के अनुसार उससे पहले के पांच वर्षों में देसी गाय की आबादी में 32 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है, जबकि विदेशी नस्ल की गाय की आबादी में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यही हाल रहा तो अगले दस वर्षों में भारतीय देसी गाय विलुप्त हो जाएगी।
गायों की प्रमुख देशी नस्लें कौन सी हैं ?
गायों की प्रमुख देशी नस्लें | साहिवाल |
लाल सिन्धी | गीर |
थपाकर | हरियाणा नस्ल |
पशु विज्ञानियों का कहना है कि यदि दूध का उत्पादन ही बढ़ाना है, तो ज्यादा दूध देने वाली भारतीय नस्ल की गायों से संकरन करवाया जाए। इनमें पंजाब की साहिवाल, गुजरात की गिर और राजस्थान की थारपारकर प्रमुख नस्लें हैं। लेकिन अपने पैरों पर कुठाराघात करने वाले भारतीय नीति-नियोजकों को केवल विदेशी में ही अच्छाइयां दिखाई पड़ती हैं। सुना है कि सरकार संकरन को मानक बनाने के लिए कानून बनाने की सोच रही है। उसे तत्काल इसे अंजाम देना चाहिए। समय आ गया है कि हम अपनी पिछली पीढी की गलतियों को सुधारें और अपनी देसी गाय को विलोपन से बचाएं। दूध को अमृत समझने वाले देश को इस तरह छाला न जाए | *Sorce: Amar ujala – 2016
दूध उत्पादन वृद्धि के लिए भारत में विदेशी नस्लों की गाय (Exotic breeds of cows in india) मुख्य रूप से प्रयोग में लाई जाती है।
देशी तथा विदेशी गाय में क्या अंतर होता है ? | देशी गाय एवं विदेशी गाय में अंतर लिखिए ?
1. देसी गाय की पीठ गोलाईनुमा होती है, विदेशी गाय की पीठ सीधी सपाट होती है।
2. देसी गाय के खूध होती है, विदेशी गाय में खूध नहीं होती है।
3. खूध वाली देसी गाय में सूर्यकेतू नाड़ी होती है जो सूर्य की किरणों से जागृत होती है जिससे एक विशेष प्रकार का केरोटीन तत्व निकलता है जो दूध में स्वर्ण के अंश का निर्माण करता है। इसीलिए गाय का दूध पीला होता है। देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र आदि श्रेष्ठ गुणों से भरपूर होता है विदेशी गाय में सूर्यकुतू नाड़ी ही नहीं होती है। इसलिए इसका दूध सफेद और बेकार ही होता है। विदेशी गायों से प्राप्त के बैलो के भी खूध नहीं होती है।
4. देसी गाय के गले में झालर होती है जिस पर हाथ फेरने से गाय बैल सुख का अनुभव करते है।
5. देशी बैल अधिक मेहनती और मौसम के अनुकूल होते है जबकि विदेशी बैल जल्दी थकने वाले और गर्मी सहन नहीं कर पाते है।
6. देसी गाय का बछड़ा जब आवाज लगाता है तब ‘हम्मा’ या ‘मॉ’ के शब्द सुनाई देते है, विदेशी गाय के बछड़े की आवाज तीखी और विचित्र सी लगती है।
7. देसी गाय के सींग अधिकतर लम्बे होते है, विदेशी गाय के सींग छोटे-छोटे होते है।
8. देसी गाय देखने में प्यारी लगती है, विदेशी गाय अधिक मोटी और अटपटी सी लगती है।
9. देसी गाय कम खाती है, विदेशी गाय भण्डार खाली कर देती है।
10. देसी गाय का दूध सुपाच्य और मीठा होता है, विदेशी का नहीं।
11. देसी गाय के दूध से स्वभाव शान्त और पवित्र होता है, विदेशी गाय का दूध पीने से मनुष्य का स्वभाव अशान्त और जंगली बनता है।
12. गौरोचन जैसा पदार्थ देशी गाय से ही मिल सकता है, विदेशी से नहीं।
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