बोध कथा : ऐ वक्त गुजर जाएगा 

बोध कथा : ऐ वक्त गुजर जाएगा 

बोध कथा : ऐ वक्त गुजर जाएगा 

Hindi Stories – एक बार अकबर ने बीरबल से कहा, “इस दीवार पर कुछ ऐसा लिखो कि खुशी में पढ़ें तो दुख हो, और दुख में पढ़ें तो खुशी हो।” बीरबल ने लिखा-“ये वक्त गुजर जाएगा।”

मुझे याद है मैंने पहले आपसे इस बात की चर्चा की है। कायदे से मुझे आज भी जबलपुर को ही याद करना था। लेकिन क्या है कि जब कोई बहन मुझसे ज़िंदगी के बारे में सवाल कर बैठती है तो मैं सारी बातें भूल कर सिर्फ इतना चाहता हूं कि मेरी किसी एक कहानी से उसके मन को थोड़ी राहत मिले। मेरी एक बहन ने अपनी एक चिंता मुझसे साझा की है। बहन की चिंता इस बात में समाहित है कि ऐसा होगा तो क्या होगा?

मैं पूरी चिंता जानबूझ कर नहीं बता रहा, पर मैं जानता हूं कि आप बिना पूरी कहानी सुने भी इतना तो समझ ही जाएंगे कि संजय सिन्हा कहना क्या चाहते हैं।
अपनी बहन की चिंता दूर करने के लिए आज मुझे एक बार और चिंता की कहानी सुनानी पड़ रही है। कहानी आपने पहले भी सुनी है, फिर सुनिए। गांव में एक लड़की थी। उसका नाम था चिंता। चिंता बहुत ज़हीन, समझदार, सुलझी हुई और खूबसूरत लड़की थी। सारे गांव की वो शान थी। गांव के लोग चिंता को दिल में बसा कर रखते थे। एक दिन वही चिंता गांव के कुंए पर बैठ कर फूट-फूट कर रोने लगी।

मेरी बुआ जब मुझे पहली बार ये कहानी सुना रही थीं, तो मेरे सामने बड़ी-बड़ी आंखों वाली दुबली सी लड़की की तस्वीर बन जाती थी। बचपन में दादी-नानी-बुआ-मां की कहानियों के पात्र सबकी आंखों के पीछे सजीव हो उठते होंगे, ऐसा मुझे लगता है। ऐसे में बुआ जब चिंता की चर्चा करतीं, तो उसकी एक तस्वीर आंखों के आगे अपने आप उभर आती थी। बुआ कहतीं, “चिंता कुंए पर बैठ कर रो रही थी।”

मैं पूछता, “बुआ क्या गांव में कोई संजय सिन्हा नहीं था, जो उसके आंसू पोंछ देता?”
बुआ रुकतीं। कहतीं, “पगले कोई आंसू तो तब पोंछे न, तब पता चले कि रोने की वज़ह क्या है।”
“हांए! इतनी सुंदर लड़की रो रही है, और गांव वालों को रोने की वज़ह ही नहीं पता?”
“बेटा, तुम सवाल बहुत करते हो। पहले पूरी कहानी सुनो। फिर कुछ पूछना।”

“ठीक है बुआ। अब आप कहानी सुनाइए।”
तो, चिंता रो रही थी। फूट-फूट कर रो रही थी।
चिंता की सहेलियां, चिंता के घर वाले वहां आ गए। चिंता रो रही है।

“सबने पूछा, क्यों रो रही हो चिंता?”
“बुआ, चिंता को चुप कराने वालों में संजू भी था क्या?”
“अबकी तुमने मुझे टोका तो कहानी नहीं सुनाऊंगी।”
“अच्छा, अब चुप रहूंगा।”

“सारा गांव जुट गया। लेकिन चिंता का रोना खत्म नहीं हुआ। वो रोए जाए, रोए जाए।”
“बुआ कब तक रोएगी, चिंता?”
“बेटा, एक मिनट में कहानी खत्म कर दूंगी तो तुम फिर तुम्हें नींद नहीं आएगी और नींद नहीं आएगी तो मुझसे एक और कहानी सुनाने की जिद करोगे। इसलिए अभी चिंता को रोने दो। थोड़ी देर रोएगी और चुप हो जाएगी।”
“नहीं बुआ, चिंता तो चुप ही नहीं हो रही। उसे चुप तो कराओ।”

“अच्छा तो सुनो। चिंता को रोते देख जब सभी लोग वहां जुट गए और फिर मां ने बहुत प्यार से उसे पुचकारते हुए पूछा कि चिंता बेटी तुम क्यों रो रही हो? क्या किसी ने तुमसे कुछ कह दिया? क्या तुम्हें भूख लगी है? क्या तुम्हें चोट लग गई है?”

“चिंता ने सुबकते हुए कहा, नहीं मां कुछ नहीं हुआ है। आज इस कुंए के पास आकर मैं बैठी तो यूं ही मुझे ख्याल आया कि जब मैं बड़ी हो जाऊंगी, तब मेरी शादी हो जाएगी।”

“ओह मेरी बेटी, तुम शादी के विषय में सोच कर रो रही हो? अभी तो बहुत दिन है बेटी तुम्हारी शादी में।” “नहीं मां, मैं शादी के विषय में नहीं सोच रही। मैं तो सोच रही हूं कि जब मेरी शादी होगी, मैं अपने ससुराल चली जाऊंगी, फिर मुझे बच्चा होगा और अपने बच्चे के साथ जब मैं तुम लोगों से मिलने गांव आऊंगी, तब मेरा बेटा यहां गेंद खेल रहा होगा, गेंद इस कुंए में गिर जाएगी, और मेरा बच्चा कुंए में झांकेगा, गेंद निकालने की कोशिश करेगा और इस कोशिश में अगर वो कुंए में गिर गया तो मैं क्या करूंगी। मां मैं इसी चिंता में घुली जा रही हूं कि मेरा बच्चा इस कुंए में गिर गया तो मैं क्या करूंगी?” सबके सब हंसने लगे। लेकिन चिंता और जोर-जोर से रोने लगी।

जब पहली बार मैंने ये कहानी सुनी थी तब मैं भी इसी सोच में था कि चिंता की चिंता तो जायज ही थी, फिर लोग हंस क्यों रहे थे।
फिर बड़ा हुआ तो मशहूर लेखक डेल कारनेगी की पुस्तक ‘चिंता छोड़ो सुख से जियो’ पुस्तक भी मैंने पढ़ ली। पर मेरे मन से चिंता की चिंता खत्म नहीं हुई।
फिर मां ने भी समझाया कि चिंता नहीं करनी चाहिए। जो बहुत चिंता करते हैं, वो दुखी रहते हैं। मैं मन में सोचता कि मां को कैसे पता कि मेरे मन में चिंता की चिंता है। मां के कहने के बाद भी मेरे कानों में रात को चिंता के रोने की आवाजें आतीं। चिंता की चिंता तब भी खत्म नहीं हुई।

फिर शादी हुई तो पत्नी ने कहा कि कुछ भी होगा तो कुछ नहीं होगा। चिंता छोड़ो मस्ती से जियो। लो जी, पत्नी को भी चिंता की चिंता के बारे में पता चल गया। और बड़ा होता गया और ये समझने लगा कि चिंता की चिंता सचमुच व्यर्थ होती है। पर मेरे समझने से क्या फायदा। समझते तो सब हैं, लेकिन सभी मन ही मन चिंता की चिंता से परेशान हैं। लेकिन इधर कुछ दिनों से पता नहीं क्यों मैंने चिंता की चिंता करनी छोड़ दी है। बड़ा आराम है। मुझे आराम है, इसीलिए मैं आपसे भी गुहार लगा रहा हूं कि आप भी चिंता छोड़िए। जो होगा, सो होगा। मस्त रहिए। कुछ भी होगा तो आसमान जमीन पर नहीं गिरेगा।

बस आज की कहानी इतनी ही है। आज इतना ही कहना है कि चाहे जो हो जाए, चिंता नहीं करनी है। कुछ भी हो जाए, आसमान सिर पर नहीं गिरेगा। और सबसे बड़ी बात यही कि ये वक्त गुजर जाएगा।

 

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