Bhuvanamandale Navayugamudayatu | भुवनमण्डले नवयुगमुदयतु
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्ग गीत की गीत गंगा में से एक व्यक्तिगत गीत जो संघ की शाखा, शिवर या अन्य कार्यकर्मों में जैसे विजयादशमी में गायन किया जाता है। देश भर में संघ की तरफ से हर माह कार्यकर्म मनाये जाते हैं। संघ गीत जैसे Bhuvana Mandale Navayugamudayati Sada Vivekananda Mayam के लिरिक्स और वीडियो नीचे दिया गया है. आप इन संघ के गीत को कंठस्थ कर सकते हैं।
Language | Sanskrit |
भाषा | संस्कृत |
श्रेणी | संघ के गढ़ गीत |
संस्कृत गीतम् : भुवनमण्डले नवयुगमुदयतु
भुवनमण्डले नवयुगमुदयतु सदा विवेकानन्दमयम् ।
सुविवेकमयं स्वानन्दमयम् ॥धृ॥
अर्थ– भुवनमण्डल में (विश्व में ) नव युग का उदय हो जो सदैव विवेकानन्द के विचारों से युक्त हो, अर्थात् सुविवेक व स्वानंद से परिपूर्ण हो।
तमोमयं जन जीवनमधुना निष्क्रियताऽऽलस्य ग्रस्तम् ।
रजोमयमिदं किंवा बहुधा क्रोध लोभमोहाभिहतम् ।
भक्तिज्ञानकर्मविज्ञानै: भवतु सात्विकोद्योतमयम् ॥१॥
अर्थ– आज का मानव जीवन या तो तमसपूर्ण निश्क्रियता और आलस्य से भरा है, या तो रजोगुण के कारण क्रोध, लोभ और मोह से आहत दिखता है। भक्ति, ज्ञान, कर्म और विज्ञान के द्वारा वह सात्विक प्रकाश देने वाला बने, ऐसे नवयुग का उदय हो, जो सदैव विवेकानन्द के विचारों से युक्त हो, जो सुविवेक व स्वानंद से परिपूर्ण
हो।
वह्निवायुजल बल विवर्धकं पाञ्चभौतिकं विज्ञानम् ।
सलिलनिधितलं गगनमण्डलं करतलफलमिव कुर्वाणम् ।
दीक्षुविकीर्णं मनुजकुलमिदं घटयतुचैक कुटुम्बमयम् ॥२॥
अर्थ– अग्नि, वायु, जल और बल को बढ़ाने वाला पंच भौतिक विज्ञान जहाँ है, जहाँ समुद्रतल और आकाश हाथ में रखे फल के समान सुगम है। जहाँ सभी दिशाओं में फैला मानव समुदाय एक कुटुम्ब में गठित है। ऐसे नवयुग का उदय हो जो सदैव विवेकानन्द के विचारों से युक्त हो अर्थात् सुविवेक और स्वानन्द से परिपूर्ण हो।
सगुणाकारं ह्यगुणाकारं एकाकारमनेकाकारम् ।
भजन्ति एते भजन्तु देवं स्वस्वनिष्ठया विमत्सरम् ।
विश्वधर्ममिममुदारभावं प्रवर्धयतु सौहार्दमयम् ॥३॥
अर्थ– जहाँ सगुणाकार या निर्गुणाकार, एकाकार या अनेकाकार ईश्वर को अपनी-अपनी निष्ठा के अनुसार ईर्श्या रहित होकर भजते हैं। विश्व धर्म में ऐसे उदारता के भाव को बढ़ाने वाले, सौहार्दमय वातावरण का निर्माण हो। ऐसे नवयुग का उदय हो जो सदैव विवेकानन्द के विचारों से युक्त हो अर्थात् सुविवेक और स्वानन्द से
परिपूर्ण हो।
जीवे जीवे शिवस्यरूपं सदा भवयतु सेवायाम् ।
श्रीमदूर्जितं महामानवं समर्चयतु निजपूजायाम् ।
चरतु मानवोऽयं सुहितकरं धर्मं सेवात्यागमयम् ॥४॥
अर्थ-जहाँ प्रत्येक जीव को शिव स्वरूप मानकर सेवा की गई हो, मनुष्य में ई वरत्व के प्रगटीकरण के लिए की गई पूजा हो, जिस युग में मनुष्य का आचरण स्मसिष्ठित में त्याग, सेवा और धर्म से युक्त है ऐसे नवयुग का उदय हो जो सदैव विवेकानन्द के विचारों से युक्त हो अर्थात् सुविवेक और स्वानन्द से परिपूर्ण हो।
Buvana maMDalE navayugamudayatu sadA vivEkAnaMdamayam |
suvivEkamayam svAnaMdamayaM ||pa||
tamOmayaM jana jIvanamadhunA niShkriyatA&lasya grastam |
rajOmayamidaM kiMvA bahudhA krOdha lOBamOhABihatam |
Baktij~jAnakarmavij~jAnaiH Bavatu sAttvikOdyOtamayam ||1||
vahnivAyujala bala vivardhakaM pAMcaBoutikaM vij~jAnam |
salilanidhitalaM gaganamaMDalaM karatalaPalamiva kurvANam |
dIkShuvikIrNaM manujakulamidaM GaTayatucaika kuTuMbamayam ||2||
saguNAkAraM hyaguNAkAraM EkAkAramanEkAkAram |
BajaMti EtE BajaMtu dEvam svasvaniShThayA vimatsaram |
viSvadharmamimamudAraBAvaM pravardhayatu souhArdamayam ||3||
jIvE jIvE SivasvarUpaM sadA BAvayatu sEvAyAm |
SrImadUrjitaM mahAmAnavaM samarcayatu nijapUjAyAm |
caratu mAnavO&yaM suhitakaraM dharmaM sEvAtyAgamayaM ||4||