भूर्शिंग महादेव : इस जगह से भगवान् भलनाथ ने महाभारत का युद्ध देखा

bhurshing mahadev temple story in hindi

भुरेश्वर महादेव मंदिर: भोलेनाथ और माँ पार्वती ने देखा था कुरुक्षेत्र का युद्ध

Bhureshwar Mahadev history in Hindi : देव भूमि हिमाचल प्रदेश वास्तव में ही ऋषि मुनियों की तपस्वी रही है। अत: महादेव की कहानी भी इसी सत्य को चरितार्थ करती है। जिला सिरमौर में नाहन-शिमला राजकीय उच्च मार्ग पर सरांहा से केवल नौ किलोमीटर दूर ग्राम पजेली टिक्करी पजेली, क्वागधार) में भूर्शिंग महादेव (Bhureshwar Mahadev) की देवस्थली है ठीक ऊपर पर्वत शिखर पर जो समुद्रतल से लगभग 6500 फीट ऊँचा है पर भूशिंग महादेव (Bhureshwar Mahadev) का प्राचीन मंदिर भव्यमान है। जहां से चारो ओर का अति विहंगम दृश्य मन को प्रसन्नचित करता है तथा मन को शांति प्रदान करता हुआ अध्यात्मवाद की ओर अग्रसर करता है।

इस पवित्र मंदिर को भूर्शिंग महादेव (Bhurshing Mahadev),भूरेश्वर मंदिर(Bhureshwar Mahadev) और  भूरसिंह महादेव मंदिर (bhursingh mahadev temple) के नाम से भी जाना जाता है।  

भू+लिंग कांलातर में भूशिंग । भू+ ईश्वर भूरेश्वर । यह भूर्शिग महादेव के प्रचलित नाम है। द्वापर युग में इस पर्वत शिरवर पर बैठ कर भगवान शंकर ने माँ पार्वती के कहने पर महाभारत का युद्ध देखा था, तब से यहाँ भूमि पर शिवलिंग की उत्पति मानी जाती है,ऐसी किवदन्ति है। मंदिर 1870 मीटर की ऊंचाई पर पेजरली गांव में स्थित है और एक स्थानीय देवता (देवता) – भूरी (भूर) सिंह को समर्पित है।

भूरेश्वर महादेव की कथा (Bhureshwar Mahadev Story) 

सौतेली मां के दुर्व्यवहार से दुःरवी भाई-बहन (जिनके नामकरण अज्ञात है) अल्पायु में ही गाय, बैल, भेड़-बकरी चराने के लिए इसी पर्वत शिखर पर आते थे तथा शिवलिंग के ईद-गिर्द खेलते और सोते थे। शिवशंकर महादेव ने इन्हें अपने चरणों में स्थान दिया तो समय व्यतीत होने पर दोनो अबोध भाई-बहन शिव की अराधना करते करते शिव भक्त हो गए और भगवान शंकर ने इन्हें देव शक्ति प्रदान कर अपना गंण (भाई देवता रूप में बहन देवी रूप में बना दिया)।परन्तु आम जनता के लिए यह दोनों उस समय अबोध बालक-बालिका बने रहे।

शरद ऋतु के एक दिन महाप्रलय वाली वर्षा, तुफान, ओलावृष्टि, बर्फबारी में पशु चराने गये भाई-बहन से एक गाय का बछड़ा गुम हो गया। सौतेली माँ ने दोनो बच्चों को उस बछड़े की खोज कर लाने के लिए जंगल में भेज दिया। पर्वत शिखर पर शिवलिंग के पास शीतप्रकोप से एवं देवयोग के कारण बछड़ा निश्चल हो गया था। भाई ने जब यह देखा तो स्वयं वहा रह गया और बहिन को घर भेज दिया। दूसरे दिन पिता ने अपने पुत्र और बछड़े की खोज में जंगल में उसी पर्वत शिखर पर जाकर देखा तो नीचे बछड़ा और ऊपर शिवलिंग के पास लड़का निश्चल खड़े थे जो देखते ही देखते अंतर्ध्यान हो गये।

सौतेली मां ने बहिन का विवाह काना कडोह (जो महाबली था परन्तु वास्तव में अंधा था) से करने का निश्चय किया जिसे पिता ने भी स्वीकार कर लिया। तदन्तर काना कडोह बारात लेकर पर्वत शिखर पर आया। बहिन की विदाई के समय भाई-बहन बहुत प्यार-प्रेम से मिले। भाई को छोड़कर बहिन ससुराल जाने को तैयार नही थी, भाई ने बहुत मिन्नत की और विदाई दी, करीब एक किलोमीटर ग्राम कथाड़ की तरफ जाते हुए लगभग 50 बीघे लम्बे चौड़े मैदान भ्यूतल (भूतल) में डोली से लड़की ने छलांग लगा दी तथा अपनी देव शक्ति को प्रयोग करते हुए लड़की ने छलांग लगाते ही आधा मैदान अपने साथ घिन्नी घाड की तरफ गिराते हुए चली गई तथा एक किलोमीटर नीचे जाकर अर्तध्यान होकर एक बान के वृक्ष के नीचे भाभड़ के घास पर पवित्र जलधारा के रूप में प्रकट हो गई। यह जलधारा देवी नदी के रूपसे विख्यात होकर कई ग्रामों को पेय तथा सिंचाई जल की सुविधा प्रदान करती हुई हरियाणा प्रदेश में प्रवेश करती है।

भूर्शिंग महादेव (Bhurshing Mahadev) और भूरेश्वर मंदिर (Bhureshwar Mahadev) पर्व  

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Bhurshing Mahadev Temple | भूर्शिंग महादेव भगवान् भलनाथ ने महाभारत का युद्ध देखा

जिन बच्चों (भाई-बहन) को लोग अबोध असहाय सौतेली माँ के दुर्व्यवहार से पीड़ित मानते थे उन्होने भगवान शिव द्वारा प्रदत देवशक्ति का प्रयोग करके सबको आश्चर्य चकित करके दया करने का पाठ सिखा कर शिव लोक को प्राप्त हुए तथा इस विवाह विदाई कार्यक्रम, भाई-बहन का प्यार, प्रेम, दयावान बनने के लिए देवशक्ति आस्था रखने हेतु प्रति वर्ष कार्तिक मास की शुक्लपक्ष में दीवाली के ठीक ग्यारवें दिन एकादशी तिथि को महान पर्व (बड़ा मेला व पूजन) मनाया जाता है। जिसमें पजेली देवस्थली से ढोल-नगाड़ो व पुजारियों सहित शोभा यात्रा का आरम्भ होता है तथा यह शोभा यात्रा पर्वत शिखर पर स्थित भूर्शिंग महादेव (Bhurshing Mahadev) मन्दिर तक जाती है। इस महान पर्व पर रात को भाई-बहन का पवित्र अपूर्वमिलन होता है तथा द्वादशी को मेला पूर्ण हो जाता है।

इस महान पर्व में लाखो श्रद्धालु  भूर्शिंग महादेव मन्दिर (Bhurshing Mahadev) में महादेव के दर्शन कर मनौतियां मान कर पूजन कर अपने को कृत कृत्य करते है। श्रावण माह की शुक्लपक्ष की एकादशी को उपरोक्त कथानुसार कार्यक्रम होता है परन्तु यह केवल दिन का होता है रात्री का नहीं। वैसे भी प्रतिदिन सैंकड़ो श्रद्धालु भक्तजन मनीतियों के लिए, पूजन के लिए भुर्शिग महादेव मन्दिर में दर्शन के लिए आते रहते हैं।

कैसे पहुंचे भूर्शिंग महादेव (Bhurshing Mahadev) और भूरेश्वर मंदिर (Bhureshwar Mahadev) 

Bhurshing Mahadev Temple: वर्षा शालिका ग्राम पजेली बसपा पर स्थित मन्दिर केवल एक किलोमीटर है। भूरेश्वर मंदिर कुम्हारटी – नाहन  रोड पर स्थित है यह नाहन को गेट हुए नेना टिकर से लगभग 7 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है यह मंदिर बहूत ही सुंदर है आप जब भी हिमाचल प्रदेश आयें इस मंदिर में ज़रुर जाऐं  यह पहुँच कर आपको बहुत ही अदभुत सी ख़ुशी का अनुभव होगा यह चारों तरफ बहुत शांति है और सुंदर नज़ारा है | चंडीगड़ से इसकी दुरी तक़रीबन 70 किलोमीटर है. 

जय भूर्शिग महादेव ।

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