भारतीय ग्रंथों में पर्यावरण संरक्षण का वैज्ञानिक सरल उपाय
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
— स्कंदपुराण
- अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
- पिचुमन्दः = नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
- न्यग्रोधः = वटवृक्ष (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
- चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
- कपित्थः = कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
- बिल्वः = बेल (85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
- आमलकः = आवला (74% कार्बनडाइऑक्साइड सोखता है)
- आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
(उप्ति = पौधा लगाना) अर्थात् – जो कोई इन वृक्षों के पौधो का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करने पड़ेंगे। इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज नरक के दर्शन हो रहे है । पीपल, बरगद और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है। ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है। साथ ही, धरती के तापमान को भी कम करते है।
हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षो से दूरी बनाकर यूकेलिप्टस ( नीलगिरी ) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की। यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत ४० वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।
आगामी वर्षों में प्रत्येक 500 मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा। घरों में तुलसी के पौधे लगाना होंगे। हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने “भारत” को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते हैं । भविष्य में हमारी आने वाली पीढ़ी को भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।आइए हम पीपल , बड़ , बेल , नीम , आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं “सुजलां सुफलां पर्यावरण “ देने का प्रयत्न करें।
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