भारत के पर्व एवं त्योहार पर निबंध | Bharat ke Tyohar Par Nibandh
इस पोस्ट में आप Essays on Indian Festivals for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, and 12 paragraphs, long and short essays on ‘Indian Festivals’ especially written for Kids, CBSE, ICSE and State Board School and College Students in Hindi Language. इस पोस्ट के माध्यम से आप भारतीय त्योहारों पे अपने विचारों के द्वारा छोटा – बड़ा लेख भी लिख सकतें हैं।
भारतीय पर्व एवं उत्सव पर निबंध | Essay on festivals of India in Hindi: अपना देश भारत, अनेकता में एकता का जीवंत प्रतीक है। यह विभिन्नताओं का एक ऐसा देश है जो अन्यत्र दुर्लभ है । इस दुर्लभता व अद्भुत स्वरूप में आनंद और उल्लास की छटा दिखाई देती है । हमारे देश में जो भी पर्व मनाए जाते हैं उनमें अनेकरूपता दिखाई पड़ती है । कुछ पर्व ऋतु व मौसम के अनुसार मनाए जाते हैं तो कुछ सांस्कृतिक या किसी घटना विशेष से संबंधित होते हैं । हमारे उत
अपने देश में तो पर्वों का जाल बिछा हुआ है। हमारे यहां तो आए दिन कोई–न–कोई पर्व मनाया जाता रहता है। ये पर्व किसी एक ही वर्ग, जाति या संप्रदाय से संबंधित न होकर सभी जातियों, वर्गों और सम्प्रदायों के द्वारा सम्पन्न और आयोजित होते हैं अतः ये पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और सामाजिक होते हैं । इन सभी प्रकार के पर्वों का कुछ विशिष्ट अर्थ होता है इसके साथ इनका कोई न कोई महत्व भी अवश्य होता है जिसमें मानव की प्रकृति और दशा भी किसी न किसी रूप में अवश्य झलकती है। इन पर्वों का महत्व समाज और राष्ट्र की एकता, समृद्धि, प्रेम, मेल–मिलाप की दृष्टि से है ये पर्व हमारी समृद्ध सांस्कृतिक । विरासत की झलक भी प्रस्तुत करते हैं हमारे अन्दर ऐक्य व समन्वय भाव, सामाजिक समरसता को विभिन्न पर्व समय–समय पर घटित होकर उत्पन्न करते रहते हैं ।
जातीय भेद–भावना और संकीर्णता के धुंध को ये त्योहार अपने अपार उल्लास और आनन्द द्वारा छिन्न भिन्न कर देते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह होती है कि ये त्योहार अपने जन्म काल से लेकर अब तक उसी पवित्रता और सात्विकता की भावना को संजोए हुए हैं। युग परिवर्तन और युग का पटाक्षेप इन पर्वों पर कोई प्रभाव नहीं डाल सका ।
इन पर्वो का रूप चाहे बड़ा हो, चाहे छोटा, चाहे एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित हो, चाहे संपूर्ण समाज और राष्ट्र को प्रभावित करने वाला हो, ये सभी पर्व अवश्य ही श्रद्धा व विश्वास, नैतिकता और शुद्धता के परिचायक हैं। मानवीय मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले हमारे देश के पर्व श्रृंखलाबद्ध हैं। एक त्योहार समाप्त होने पर दूसरा पर्व आ जाता है। तात्पर्य है कि पूरे वर्ष हम पर्वों के मधुर मिलन से जुड़े रहते हैं। देश की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं ये पर्व
इन पर्व उत्सवों को एक अन्य दृष्टि से देखना भी ज्ञानवर्धक व रुचिकर हो सकता है। क्या ऋतुओं और पर्वों में भी कोई सम्बन्ध है ? वेदों में प्रकृति को ईश्वर का साक्षात रूप मानकर उसके प्रत्येक रूप की वंदना की गई है। इसके साथ आसमान के तारों और आकाश मंडल की स्तुति कर उनसे रोग और शोक को मिटाने की प्रार्थना की गई है। धरती और आकाश की प्रार्थना से हर तरह की सुख–समृद्धि पाई जा सकती है। अतः हमारे ज्ञानी ऋषियों ने प्रकृति अनुसार जीवन–यापन करने का सुझाव दिया है। साथ ही उन्होंने वर्ष में होने वाले ऋतु परिवर्तन चक्र को समझकर व्यक्ति को उस दौरान उपवास और उत्सव करने के नियम बनाए ताकि मौसम परिवर्तन की हानियों से बचकर उसका आनन्द लिया जा सके।
अपने देश में वर्ष में 6 ऋतुएं होती हैं– 1. शीत–शरद 2. बसंत 3. हेमंत 4. ग्रीष्म 5. वर्षा 6. शिशिर ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। भारत में बसंत ही से नववर्ष का शुभारम्भ होता है। जिस तरह इन मौसमों में प्रकृति में परिवर्तन होता है उसी तरह हमारे शरीर और मन–मस्तिष्क में भी परिवर्तन होता है और जिस तरह प्रकृति के तत्व जैसे वृक्ष – पहाड़, पशु–पक्षी आदि सभी उस दौरान प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए उससे होने वाली हानि से बचने का प्रयास करते हैं उसी तरह मानव को भी ऐसा करने की ऋषियों ने सलाह दी। उस दौरान ऋषियों ने ऐसे त्योहार और नियम बनाए जिनका कि पालन करने से व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत कर सके ।
सर्वहित सन्देश से साभार
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