Motivational Story About Positive Thinking, Inspirational Story, Prerak Prasang, Prerak Katha, Moral Story Stories in Hindi: कर्म का फल
सुधबुध में आपका स्वागत है हम आपके लिए Motivational Story About Positive Thinking, Inspirational Story, Prerak Prasang, Prerak Katha, Moral Story जिससे जीवन का मार्ग दर्शन हो सके सकारात्मक सोच बन सके उन प्रेरक बोध कथाओं को आपके पढ़ें के लिए लाते हैं।इसी कड़ी मैं हमारी आज की कहानी कर्म का फल जो हिंदी की प्रेरक कथाओं में से एक है। चलिए पढ़ते हैं :
कर्म का फल
एक नगर में सुनीता नाम की महिला अकेली रहती एक थी। उसका पुत्र परदेश में कमाने के लिए गया हुआ था। वह जब भी भोजन बनाती तो एक रोटी भिक्षा में देने के लिए भी बना देती थी। उसके दरवाजे पर एक भिखारी रोज आता और धीमे स्वर में कहा ‘कर्म करते जाओ, ईश्वर तुम्हें फल अवश्य देगा।’ उसका रोज का यही क्रम था।
सुनीता को भिखारी के बोलने पर आश्चर्य होता था। वह हमेशा अपने पुत्र के स्वदेश लौटने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती रहती थी कि उसका पुत्र शीघ्र ही घर आ जाये।
एक दिन उसने दुखी होकर अपनी जीवन लीला को समाप्त करने की सोची, क्योंकि वह अपनी इस नीरस जिन्दगी से परेशान हो गई थी। उसने खुद को खाने के लिये जो रोटी बनाई उसमें विष डाल दिया, और रोटिया बना ली।
आदत के अनुसार उसने भिखारी को भी उसी आटे से रोटिया बना दी। क्योंकि रोज भिखारी को भी रोटी देती थी। जब वह भिखारी को भी रोटी देने लगी तब उसे ध्यान आ गया कि वह विषवाली रोटी भिखारी को भी दे रही है। उसके हाथ कांप गये। उसने सोचा यह मैं क्या कर रही हूं? उसने भिखारी से क्षमा मांगते हुए उसे रूकने को कहा। और तुरन्त शुद्ध आटे से गरम रोटी बनाकर दी। भिखारी ने उससे कहा, ‘बेटी, ईश्वर पर भरोसा करो, अपना कर्म करते जाओ।’ कहकर वह चला गया। सुशीला ने विष से बनी रोटियां न खाकर शुद्ध आटे से बनाई गई रोटिया ही खाई।
एक दिन अचानक उसका पुत्र परदेश से वापस आ गया। सुशीला उसे देखकर फूली नहीं समाई। उसने देखा उसका पुत्र बहुत दुबला और फटेहाल में था।
उसने रुआंसे स्वर में कहा, ‘बेटे, तुम तो परदेश में कमाने के लिए गए थे, फिर तुम्हारी यह हालत कैसे हुई? शरीर भी बहुत दुबला हो गया, क्या कारण है?” पुत्र मौन आंखों से देखता रहा।
मां ने फिर पूछा, ‘इतने सालों बाद तुम्हें मेरी फिक्र कैसे हुई? मैंने सोचा कि तुम मुझे भूल गए हों । ‘
पुत्र की आंखें नम हो आई, ‘नहीं मां ऐसी बात नहीं है। जब मैं परदेश में गया था तो मैंने वहां काफी धन कमाया। जब मैं वापस घर आने लगा तो रास्ते में डाकुओं के एक दल ने व्यापारियों के साथ मुझे भी पकड़ लिया….।’ मां ने तुरन्त उसे बीच में टोकते हुए पूछा, ‘पर बेटे, उन्होंने तुम्हें कैसे छोड़ दिया।’
पुत्र ने कहा, ‘उन्होंने सभी व्यापारियों को मार डाला। जब वे मुझे मारने लगे तभी वहां एक दिव्य रोशनी आई। उसके बाद मैं बेहोश हो गया। जब होश आया तो मैं अपने घर के बाहर खड़ा था।
सुशीला ने इसे भगवान का चमत्कार ही समझा। उसे तुरन्त उस भिखारी की बातें याद आ गई कर्म करते जाओ….। उसने दूसरे दिन हमेशा की तरह उस भिखारी का इंतजार किया, लेकिन वह नहीं आया। वह भिखारी और कोई नहीं । ईश्वर का दूत ही था, जिसने उसके बेटे की भी मदद की थी। उस भिखारी ने सुशीला को जिन्दगी जीने का सबक बता दिया था। उसने अपने बेटे को गले से लगा लिया और भगवान कृष्ण की गीता में कही गई वे पंक्तियां याद हो आई कि कर्म किये जाओ फल की चिन्ता मत करो।’
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