पंडित शारदा राम फिल्लौरी (Pundit Shraddha Ram Phillauri) ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वेदांत पंडित राम चंद्र जी से प्राप्त की और अब्दुल्ला शाह सैयद से ग्रीक, फारसी आदि सीखी। वह बचपन से ही कई लिपियों को जानते थे और कविता लिखने का उनका जुनून बचपन से ही प्रकट हो गया था। महज 18 साल की उम्र में उन्होंने महाभारत और श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर देश में खूब नाम कमाया।
पंडित जी की कथा प्रणाली आम पंडितों की तरह नहीं थी। जब वह कोई कथा या घटना सुना रहे होते तो श्रोताओं की आंखों के सामने सारी घटनाएँ घट रही होतीं थी । पंडित जी 1862-63 में कपूरथला आए। उस समय राज्य के राजा रणधीर सिंह ने कुछ लोगों के प्रभाव में धर्म परिवर्तन करने का फैसला किया था और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए राजी कर रहे थे। पंडित जी ने राजा के मन में आए सभी प्रश्नों को हर प्रकार से शांत किया और राजा ने अपना विचार त्याग दिया। पंडित लाहौर चले गए, जहां उन्होंने ज्ञान मंदिर का निर्माण कराया और चारों वेदों को प्रतिष्ठित किया।
इस विश्व प्रसिद्ध आरती की रचना उन्होंने सन 1870 में की थी। सिर्फ रचना ही नहीं आरती की धुन भी उन्होंने ही तैयार की थी। उसके बाद उन्होंने फिल्लौर में चौक पासाई में अपने आश्रम के स्थान पर हरि ज्ञान मंदिर भी बनवाया।
श्री श्रद्धा राम फिल्लौरी (Pundit Shraddha Ram Phillauri) प्रसिद्ध विद्वान, प्रचारक, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी व हिंदी के पहले उपन्यासकार थे। पंडित जी ने हिंदी में ‘सच धर्म मुक्तावली’, ‘तत्व दीपक’, ‘भाग्यवती’, ‘रामल कामधेनु’, ‘सतोपदेश’, ‘सत्यमृत प्रवाह’ और ‘बीज मंत्र’ नामक पुस्तकें लिखीं। उन्होंने उर्दू में ‘धर्म रक्षा’, ‘धर्म संवादे’, ‘दुर्जन मुख चापेटिका अद्यतन संग्रही’ और ‘उसुले मजाहिब’ नामक पुस्तकें भी लिखीं।
पंडित जी ने पंजाबी में ‘पंजाबी गलबात’ और ‘सिख दे राज दीआं विधियां ‘ शीर्षक से दो पुस्तकें प्रकाशित कीं। 24 जून, 1881 को यह निडर और महान लेखक, संगीत विशेषज्ञ, ज्योतिषी, परोपकारी का निधन हो गया, लेकिन उनके द्वारा रचित आरती अमर हो गई।