‘स्वर्णप्राशन’, बच्चों को बुद्धिमान और बलशाली बनाने के लिए जरूर कराएं स्वर्णप्राशन संस्कार
सुधबुध में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में हम सुवर्णप्राशन के फायदे और सेवन विधि (Swarna Prashana in Hindi) के बारे में पढ़ेंगे। पुराने समय में स्वर्णप्राशन का बहुत ही महत्व था आज भी है लेकिन इसकी जानकारी काम हो गई है।
स्वर्णप्राशन Consumption of medicated Gold :सुवर्णप्राशनम् या स्वर्णप्राशनम् के बारे में बहुत लोगों के प्रश्न आ रहे थे तो ये लेख आप सब के लिए है कि सुवर्णप्राशनम् क्या है और किसको देना चाहिए तो आप ये लेख जरुर पढ़े।
स्वर्ण प्राशन (Suvarnaprashan) संस्कार क्या है?
सुवर्णप्राशन (Suvarnaprashan) हमारी सनातन संस्कृति के मुख्य 16 संस्कारो में से एक है जो सबसे पहला संस्कार है। हमारे यहाँ जब बच्चे का जन्म होता है तब उसको सोने की शलाका (सलाई) से उसके जीभ पर शहद चटाने की या जीभ पर ॐ लिखने की एक परँपरा रही है। इस परंपरा का मूल स्वरूप है हमारा सुवर्णप्राशन संस्कार सुवर्णप्राशन (Suvarnaprashan) का अर्थ है सोने को चटाना। बच्चे के जन्म के समय ऐसा करने की परंपरा रही है हम इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण नही जानते यह कैसे आया और क्यूँ आया? इसका हेतु और परिणाम क्या है यह हमें पता नही है। सदियों के बाद भी यह इसी स्वरुप में टिका रहना यह कुछ कम बात नहीं है। उसके लिये हमारे आचार्यो ने कितना परिश्रम उठाया होगा, तब जाकर यह हमारे तक पहुंचा है।
स्वर्णप्राशन (Swarna Prasana) संस्कार कब और किसको ?
पर यह समझने की कभी हमनें कोशिश नही की, ना ही किसी ने समझाने का कष्ट किया कि यह सुवर्णप्राशन (Suvarnaprashan) सुवर्ण के साथ साथ आयुर्वेद के कुछ औषध, गाय का घी और शहद के मिश्रण से बनाया जाता है और यह जन्म के दिन से शुरु करके पूरी बाल्यावस्था या कम से कम छह माह तक चटाना चाहिये। अगर यह हमसे छूट गया है तो बाल्यावस्था के भीतर यानि 15-16 साल की आयु तक कभी भी शुरु करके इसका लाभ ले सकते है। यही हमारी परंपरा को पुष्टि देने के लिये ही बालक के नजदीकी लोग सोने के गहने या सोने की चीज ही भेंट करते है; शायद उस समय पर वो यही सुवर्णप्राशन (Suvarnaprashan) ही भेंट करते होंगे।
सुवर्णप्राशन (Suvarnaprashan) से क्या फायदा ?
कहा जाता है कि पुष्य नक्षत्र में पुश्ती (सुदृढ़ीकरण) और पोषाना (उत्कीर्णन) गुण हैं. पुष्या नक्षत्र दिवस पर विकिरण करने वाली किरणें सोने में मौजूद औषधीय मूल्यों को दोगुना कर देती हैं. आयुर्वेद के बालरोग के ग्रंथ कश्यप संहिता में महर्षि कश्यप ने सुवर्णप्राशन के गुणों का निम्न रुप से वर्णन किया है..
सुवर्णप्राशन हि एतत मेधाग्निबलवर्धनम्।
आयुष्यं मंगलमं पुण्यं वृष्यं ग्रहापहम् ॥
मासात् परममेधावी क्याधिभिर्न च धृष्यते ।
षडभिर्मासै: श्रुतधर: सुवर्णप्राशनाद् भवेत् ॥
सूत्रस्थानम्, काश्यपसंहिता
अर्थात
सुवर्णप्राशन (Suvarnaprashan) मेधा (बुद्धि), अग्नि (पाचन अग्नि) और बल बढ़ाने वाला है। यह आयुष्यप्रद (आयु को बढ़ाने वाला) , कल्याणकारक, पुण्यकारक, वर्ण्य (शरीर के वर्णको तेजस्वी बनाने वाला) और ग्रहपीड़ा को दूर करने वाला है। सुवर्णप्राशन के नित्य सेवन से बालक एक मास में मेधायुक्त बनता है और बालक की भिन्न भिन्न रोगो से रक्षा होती है। वह छह मास में श्रुतधर (सुना हुआ सब याद रखनेवाला) बनता है अर्थात उसकी स्मरणशक्त्ति अतिशय बढ़ती है।
यह सुवर्णप्राशन पुष्यनक्षत्र में ही उत्तम प्रकार की औषधो के चयन से ही बनता है। पुष्यनक्षत्र में सुवर्ण और औषध पर नक्षत्र का एक विशेष प्रभाव रहता है। यह सुवर्णप्राशन से रोगप्रतिकार क्षमता बढ़ने के कारण उसको वायरल और बेक्टेरियल इंफेक्शन से बचाया जा सकता है। यह स्मरण शक्ति बढ़ाने के साथ साथ बालक की पाचन शक्ति भी बढ़ाता है जिसके कारण बालक पुष्ट और बलवान बनता है। यह शरीर के वर्ण को निखारता भी है।
इसलिए अगर किसी बालक को जन्म से 15-16 साल की आयु तक सुवर्णप्राशन देते है तो वह उत्तम मेधायुक्त बनता है और कोई भी बीमारी उसे जल्दी छू नही सकती।
स्वर्णप्राशन (Swarnaprashana) किसको व कब देना चाहिए?
जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक प्रत्येक महिने पुष्य नक्षत्र पर बलाबलानुसार मात्रा निर्धारण कर स्वर्णप्राशन करवाना चाहिए।
स्वर्णप्राशन (Swarnaprashana) की आवश्यकता (उपयोगिता)
सभी माता-पिता चाहते है कि उनके बच्चे शारिरीक, मानसिक व बौद्धिक स्तर पर सर्व श्रेष्ठ हो। इसके लिए बच्चे का गर्भकालीन आरोग्य व जन्मतः आरोग्य( जो जन्म के पश्चात् धीरे-धीरे बनता है) दोनों ही उत्तम होने चाहिए। बच्चों के लालन पालन के साथ ही बचपन से आस-पास की अनुकुल-प्रतिकुल परिस्थितियों का प्रभाव उसकी बुद्धि व मानसिक क्षमता पर दिखाई देता है। 16 वर्ष तक बालक के मस्तिष्क का पूर्णरूप से विकास होता है। अतः इस आयु तक बालक की शारिरीक व बौद्धिक वृद्धि के साथ ही उसकी इम्युनिटी बढाने के लिए आयुर्वेद में स्वर्णप्राशन संस्कार करवाया जाता है।
स्वर्णप्राशन (Swarnaprashana) संस्कार कब करवाना चाहिए?
खाली पेट ब्रह्म मुहुर्त पर या सुबह जल्दी सुबह जल्दी ना कर पाने पर, दिन भर में कभी भी खाने व औषधी में 45 मिनट का अन्तर रखकर किया जा सकता है। प्रत्येक दिवस करना संभव ना हो तो पुष्य नक्षत्र पर नक्षत्र प्रारंभ से नक्षत्र समाप्ति के समय के मध्य समय में शुभ मुहुर्तानुसार।
पुष्य नक्षत्र स्वर्णप्राशन (Swarna Prashana) के लिए ही क्यो ?
पुष्य नक्षत्र यह सभी नक्षत्रों में सर्व श्रेष्ठ बताया गया है। उस समय शास्त्रों में शुभ कार्य व औषधपान का उल्लेख किया गया है। औषधी/वनस्पति के गुण इस नक्षत्र पर विशेष रूप से बढ़े हुए होते है। एवं इस नक्षत्र में किये गये कार्य एवं सेवन की गई औषधि उत्तम फलप्रदायी होती है।
सुवर्णप्राशन के लाभ (Swarna Prashana Benefits in Hindi)
नियमित रूप से वैधकिय सलाह से किये गये स्वर्णप्राशन से बुद्धि, व्यवहारिक ज्ञान, धारण शक्ति, स्मृति इत्यादि में वृद्धि होती है। पढा गया लम्बे समय तक याद रहता
है। (स्मृति वर्धक) पाचन शक्ति ठीक रहती है। व्याधीक्षमत्व(इम्युनिटी) बढती है जिससे बच्चा जल्दी-जल्दी अस्वस्थ नही होता है रोगों से लडने की शक्ति आती है।
स्वर्णप्राशन (Swarna Prashana) किसको देना फायदेमंद होता है
- जो बच्चे बार–बार बीमार पडते हैं।
- ऋतु व पानी बदलने पर तुरंत बीमार पडते हैं।
- जिनका वजन नहीं बढता है।
- जिनको बोलना नहीं आता है या जो बोलते समय हकलाते हैं या तुतलाते हैं।
- जिनको भूख नहीं लगती है।
- जो बिस्तर गीला करते है।
- मंद बुद्धि बालक।
- जिनको पढ़ा हुआ याद नहीं रहता है।
- कुषोपण से पीड़ित।
- जो बहुत गुस्सा करते है।
ऐसे बच्चों को स्वर्णप्राशन अत्यन्त लाभदायक रहता है।