च्यवनप्राश के जनक कौन थे और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई ?

history of Chyawanprash

शरीर में स्फूर्ति प्रदान करने वाले टॉनिक च्यवनप्राश को किसने और कहां बनाया था?

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Story of Chyawanprash: लगभग 7000 साल पुराने आयुर्वेदिक फॉर्मूले पर आधारित च्यवनप्राश आजकल हर भारतीय घर में मिल जाता है, बच्चे, जवान और बुज़ुर्ग बड़े ही चाव से इसका इस्तेमाल करते हैं। भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में च्यवनप्राश गुणों की खान माना जाता है। शारीरिक दुर्बलता और रोगों से लड़ने के लिए च्यवनप्राश का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। च्यवनप्राश इम्यूनिटी डबल करता है, तनाव सहने की शक्ति बेहतर बनाता है और एनर्जी बढ़ाता है। हर मौसम में सब उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त औषधि, लेकिन क्या आप जानते हैं कि च्यवनप्राश का इतिहास क्या है इसके जनक कौन थे और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई ? 

अगर नहीं तो आपको हम बताते हैं यह जानकारी बहुत ही रोचक है। 

आयुर्वेद की सबसे जानी-मानी औषधि, च्यवनप्राश के जनक का नाम च्यवन ऋषि हैं इन्ही के नाम से इस औषधि का नाम च्यवनप्राश पड़ा। च्यवन ऋषि के पिता जी का नाम भृगु ऋषि था। ढोसी क्षैत्र में ऋषि भृगु का आश्रम था। हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर स्थित यह पहाड अरावली पर्वत शृंखला का हिस्सा है। वैदिक काल में इसे आग्नेयगिरी भी कहा जाता था। इस पहाड़ पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां मौजूद हैं।  च्यवन ऋषि का जनम इसी आश्रम में हुआ, ऋषि च्यवन ने यहीं कठोर तप किया।

च्यवनप्राश की उत्पत्ति कैसे हुई ? 

एक बार तप पर बैठे च्यवन ऋषि का शरीर मिट्टी के आवरण से ढक गया उस समय के राजा शर्याति अपनी बेटी के साथ वहां पर आये उनकी बेटी राजकुमारी सुकन्या ने मिट्टी का ढेर समझ कर उसमे लकड़ी डाल दी जिससे महर्षि च्यवन के खून निकलने लग गया।  जब राजकुमारी को मिट्टी के ढेर में च्यवन ऋषि का पता चला तो राजकुमारी बहुत उदास हुईं और उन्होंने महर्षि च्यवन की सेवा उनकी पत्नी बनकर करने का निर्णय लिया। तप पर बैठे ऋषि च्यवन की उम्र ज़्यादा हो चुकी थी लेकिन तप सम्पूर्ण होने के बाद देवताओं ने उनको युवा बना दिया। युवा होने के बाद उन्होंने राजकुमारी सुकन्या के साथ मिलकर जड़ी बूटियों के आयुर्वेदिक विज्ञान से च्वनप्राश जैसे अद्भुत औषधि का निर्माण किया।

प्रमुख जड़ी बूटियां

शंखपुष्पी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, सफेद मूसली, पलाश, भूमि आंवला, खैर के बीज, गाद, कसीटा, धावड़ा, कमरकस जड़ी- बूटी प्रमुख हैं। इसके इलावा वहां पाए जाने वाली आंवला, अशोक, अश्वगंधा, अतीस, बेल, भूमि अम्लाकी, ब्राह्मी, चंदन, गुग्गल, पत्थरचुर, पिप्पली, दारुहल्दी, इसबगोल, जटामांसी, चिरायता, कालमेघ, कोकुम, कथ, कुटकी, मुलेठी, सफेद मूसली, केसर, सर्पगंधा, शतावरी, तुलसी, वत्सनाम, मकोय का भी इस्तेमाल किया जाता है। 


मान्यता है कि यहीं पर अब से करीब 7 हजार साल पहले तपस्या करते हुए महर्षि च्यवन ऋषि ने पहाड़ पर उपलब्ध जड़ी-बूटियों से सर्वप्रथम आयुर्वेदिक च्यवनप्राश बनाया था। बुंदेलखंड का ललितपुर जिला औषधीय वनस्पतियों की राजधानी रही है। च्यवन ऋषि ने आयुर्वेदिक औषधियों को विश्वभर में प्रचलित किया। ऐसी एक और मान्यता है कि उन्होंने बुंदेलखंड की धरती पर ही च्यवनप्राश बनाया था। 

च्यवनप्राश के फायदे 

  • पूरे परिवार के लिए अच्छे स्वास्थ्य, सहनशक्ति और प्रतिरक्षा के लिए उत्कृष्ट टॉनिक.
  • बीमारियों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा और शरीर के प्रतिरोध को बढ़ाता है. संक्रमण को रोकता है, खासकर खांसी और ठंड.
  • यह शरीर की अपनी आंतरिक रक्षा तंत्र, प्रतिरक्षा प्रणाली, सामान्य प्रतिरोध और सहनशक्ति को बढ़ाने में मदद करता है जिससे थकान और थकान कम हो जाती है.
  • च्यवनप्राश विशेष एंटीबॉडी के संतुलन को पुनर्स्थापित करता है, जो शरीर के प्रतिरोध को रोगाणुओं और बैक्टीरिया में बढ़ाता है. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट आज के व्यस्त जीवन के हानिकारक प्रभावों को बेअसर करने में मदद करते हैं.
  • प्रभावी एंटी-ऑक्सीडेंट.
  • च्यवनप्राश स्पेशल सभी उम्र के लिए आदर्श है.

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