आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए ? Aarti kya hai aur kaise karni chahiye ?
हिन्दू धर्म में आरती (Aarti) का बहुत ही महत्व है, आरती (Aarti) करने से पूजा की पूर्णता मानी जाती है। आरती पूरे विश्व के मंदिरों में लगभग एक सी होती है। बड़े मंदिर हों या बहुत ही छोटे मंदिर हों सबमें आरती का होना अनिवार्य है। आरती के समय भी लगभग सभी जगह एक से ही हैं लेकिन कई बड़े मंदिर है जिनमे आरती 5 और 7 समय भी की जाती है ।आरती पूजन से मन को शान्ति मिलती है और अगर कहीं पूजा विधि में कोई गलती हुई हो कहा जाता है कि आरती करने से सभी गलतियों और त्रुटियों से क्षमा मिल जाती है। अगर घर में आरती हो रही हो तो उस घर में सुख और शान्ति का वास होता है।
आरती आपने इष्ट को खुश करने लिए किया जाने वाली क्रिया है हिन्दू धर्म में अलग इष्ट देवता और देवी की आरती भी अलग अलग है लेकिन भाव सबमे एक सा ही है। आरती (Aarti) के बिना पूजा (Puja) अधूरी मानी जाती है. शास्त्रों में आरती करने के कुछ विशेष नियम (Rules Of Aarti) बताए गए हैं. दीपक घुमाने का भी एक खास तरीका नियत किया गया है.
लेकिन आजकल के बच्चे या व्यसक भी जानना चाहते हैं कि आरती क्या है, आरती क्यों होती है और आरती कैसे करनी चाहिए ? तो आइये जानिए आरती से जुड़ी जरूरी बातें (Significance Of Aarti).
आरती को ‘आरत्रिका‘ अथवा ‘आरतिका‘ और ‘नीराजन‘ भी कहते हैं। पूजा के अन्त में आरती (Aarti) की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति होती है। स्कन्दपुराण में कहा गया है:-
मन्त्रहीन क्रियाहीनं यत् पूजनं हरेः।
सर्वे सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।
आरती क्या है ? Aarti Kya hai ?
आरती रोशनी का समारोह है। “आरती” पूजा के सबसे महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में से एक है। यह प्रार्थना या शुभ अनुष्ठानों को समाप्त करने के बाद ईश्वरीय भगवान को प्रसन्न करने के लिए किया जाने वाला एक प्रार्थनापूर्ण अनुष्ठान है। कहा जाता है कि आरती (Aarti) समारोह प्राचीन वैदिक काल से निकला है जिसका अर्थ है “आरत-निवारण” का अर्थ है दुखों को दूर करना या “आ + रति” का अर्थ है ईश्वर के प्रति पूर्ण प्रेम। इसे कृतज्ञता और प्रेम की गहरी भावना के साथ गाया और किया जाता है।
आरती कैसे करनी चाहिए ? Aarti kaise karni Chahiye ?
पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है। आरती में पहले मूलमन्त्र (भगवान् या जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया हो, उस मन्त्र) के द्वारा तीन बार पुष्पाञ्जलि देनी चाहिए और ढोल, नगारे, शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों के तथा जय–जयकार के शब्द के साथ शुभ पात्र में घृत से या कपूर से विषय संख्या की अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए :-
ततश्च मूलमन्त्रेण दत्त्वा पुष्पाञ्जलित्रयम् ॥
महानीराजनं कुर्यान्महावाद्यजयस्वनैः ॥
प्रज्वालयेत् तदार्थ च कपूरण घृतेन वा।
आरार्तिकं शुभे पात्रे विषमानेकवार्तिकम् ॥
आरती करने की विधि | Aarti Karne ki Vidhi
साधारणतः पाँच बत्तियों से आरती (Aarti) की जाती है, इसे ‘पञ्चप्रदीप‘ भी कहते हैं। एक, सात या उससे अधिक बत्तियों से आरती (Aarti) की जाती है। कुंकुम, अगर, कपूर, चन्दन, रुई और घी अथवा हरी दर्शन धूप की एक, पाँच या सात बत्तियाँ बनाकर शंख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती (Aarti) करनी चाहिए। आरती के पाँच अंग होते हैं। प्रथम दीपमाला के द्वारा, दूसरे जलयुक्त शंख से, तीसरे धुले हुए वस्त्र से, चौथे आम और पीपल आदि के पत्तों से और पाँचवें साष्टांग दण्डवत् से आरती करें। आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमायें, दो बार नाभिदेश में, एक बार भगवान् की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमायें, दो बार नाभिदेश में, एक बार मुखमण्डल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमायें।
यथार्थ में आरती (Aarti) पूजन के अन्त में इष्टदेवता की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्टदेव की दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है।
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्।
आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥
आरती के प्रकार | Aarti ke parkaar
हिंदू मंदिर आमतौर पर दिन में पांच बार आरती (Aarti) करते हैं, यह मानते हुए कि प्रत्येक आरती देवताओं की दिनचर्या के एक विशिष्ट भाग से संबंधित है।
मंगल आरती: Mangal Aarti : 4-6 am सूर्योदय से पहले – जब भगवान जागते हैं, तो पुजारी / भिक्षु भगवान के प्रथम दर्शन और शुभ शुरुआत के लिए “गर्भ गृह” खोलते हैं।
श्रृंगार आरती : Shringar Aarti 6:30 – 7:30 am प्रात:काल – भगवान को शृंगार करने के बाद और दर्शनार्थियों के दर्शन के लिए।
राजभोग आरती: Bhog Aarti 9:30 – 10:30 am मध्याह्न – दोपहर का भोजन करने के बाद जो दिन का मुख्य भोजन होता है।
संध्या आरती : Sandhya Aarti 6:30 – 7:30 pm सूर्यास्त के समय – शाम को भक्तों के साथ विशेष प्रार्थना के बाद। यह सभी आरतियों में सबसे लोकप्रिय है।
शयन आरती: Shayan Aarti 8:00 – 9:00 देर शाम – एक अद्भुत दिन और आगामी शांतिपूर्ण रात देने के लिए भगवान की स्तुति करने के लिए दिन के अंत में अंतिम आरती।
पूजा आरती : Puja Aarti – मंगल आरती के बाद