5 आरएसएस नैतिक कहानियाँ एवं बोध कथाएँ
संघ में बोध कथाओं का बहुत महत्व है. इससे स्वयंसेवकों को काम करने का मार्गदर्शन एवं सोचने की शक्ति मिलती है. संघ की बोष कथाओं में समाज की तस्वीर को समझा जा सकता है संघ के साहित्य से ये 5 छोटी बोध कथाएं आपको अच्छी लगेंगी.
बोधकथा #1 – काम में अनुशासित रहना जरूरी
एकगरीब रो रहा था। उसे महात्मा मिले। उनसे बोला– नौकरी नहीं मिलती, घर का खर्च नहीं चलता। महात्मा बोले– नदी में पारस पत्थर है। उससे लोहा को छू दिया तो सोना हो जाएगा। गरीब ने नदी में पारस पत्थर खोजना शुरू किया। वह पत्थर उठाता, लोहे से लगाता, देखता और फेंकता। एक, दो, पांच, 10, 100, 1000 पत्थर फेंकता चला गया। उसे पारस पत्थर मिला। लोहा सोना बना। मगर काम की धुन में देख नहीं पाया। ठोकर लगने पर गिरा तो देखा लोहा सोना हो गया है, लेकिन पारस पत्थर हाथ में नहीं था।
सारांश : मार्गदर्शनमिल सकता है। उसके मुताबिक सोच–समझकर काम करें। काम में अनुशासित रहना होगा। बिल्कुल एक साधक की तरह।
बोधकथा #2 -समय का सदुपयोग करें कर्म पर विश्वास करें
एकआदमी की धान सब्जी की खेती, बगीचा और फैक्टरी थी। उसका स्वर्गवास हुआ। इकलौते बेटे ने काम संभाला तो नुकसान होने लगा। तंत्र–मंत्र किया, पर हालात नहीं बदले। गांव में एक महात्मा आए। बेटे ने दुखड़ा सुनाया। महात्मा ने दिनचर्या पूछी। फिर एक पोटली देते हुए कहा– इसमें रखे सामान को देखे बगैर सूर्योदय के पहले सब जगह छींटना। पुत्र ने यही किया। दो तीन माह में वह लाभ में गया। 8 माह बाद महात्मा गांव आए तो बताया पहले वह सुबह 8 बजे सोकर उठता था। आलस से नुकसान हो रहा था। पोटली में सिर्फ मिट्टी थी। आलस खत्म तो सब सही।
सारांश : स्वयंसेवकोंको आलसी नहीं होना चाहिए। समय का सदैव सदुपयोग करें। जीवन में तभी सफलता मिलेगी जब कर्म पर विश्वास करेंगे।
बोधकथा #3 -उत्साह के साथ अनुभव की भी जरूरत
मांके कहने पर उत्साही बालक सब्जी लेने गया। थैला लिया, रुपए। सब्जी क्या लेनी है, यह भी मालूम नहीं। दुकानदार ने पूछा तो जवाब नहीं था। फिर मां से थैला, रुपए लिया। सब्जी का नाम पूछ दुकान गया। दूसरे दिन पिता ने दूध लाने भेजा तो थैला लेकर गया। उसमें दूध डाला तो बह गया। पिता ने बर्तन में लाने की सलाह दी। अगले दिन पिता ने दोस्त के घर पिल्ला लाने भेजा। बर्तन में पिल्ले को रख ढक्कन लगाया। वह मर गया। पिता ने समझाया कि रस्सी में बांधकर लाना। अगले दिन मक्खन लाने भेजा तो उसे रस्सी से बांधने लगा। मक्खन गलकर गिर गया।
सारांश : सिर्फउत्साह नहीं, अनुभव की भी जरूरत है। तेजी से सीखना होगा। गलती करेंगे तो आलोचना होगी। मन लगाकर काम करेंगे तो सफल होंगे।
बोधकथा #4 – खुद को बड़ा दिखाने की भूल नहीं करें
एककिसान कपास की खेती करता था। इंद्र का हाथी ऐरावत फसल देख स्वर्ग से नीचे आया और कुछ हिस्सा खाकर चला गया। साथियों के साथ किसान ने रखवाली शुरू की। फिर ऐरावत आए तो सब दौड़े। ऐरावत स्वर्ग जाने लगे तो किसान ने पूंछ पकड़ी, बाकी साथी उसे पकड़ लटक गए। ऐरावत ने किसान से पूछा– कितनी फसल होती है। किसान ने कहा, बहुत। ऐरावत ने फिर पूछा– कितनी? अधिक फसल बताने के लिए किसान ने हाथ फैलाया। पूंछ छूट गई। साथियों संग किसान नीचे गिर पड़ा।
सारांश : स्वयंसेवकमेहनत करें। अनुकूल हालात में अधिक सावधान रहें। खुद को बड़ा दिखाने की भूल नहीं करे। गलती की तो मौका नहीं मिलेगा।
बोधकथा #5 – देश, काल, परिस्थिति से रास्ता बदलता है
काॅलेजके दिनों के मेरे दोस्त साइकिल से नागपुर से वर्धा की ओर चल पड़े। गर्मी का दिन था। कुल दूरी 80 किमी। तपती धूप में साइकिल चलाकर वे थक गए। दोपहर हुई तो पेड़ की छांव में रुक गए। भोजन के बाद आंख लग गई। शाम चार बजे आगे बढ़े तो कुछ देर बाद खुद को नागपुर के एरोड्रम के पास पाया। उनके होश उड़ गए। इतनी मेहनत के बाद वहीं लौट आए, जिधर से चले थे। कारण यह था, जब वे सोने जा रहे थे साइकिल का हैंडल नागपुर की ओर घूम गया था। इसलिए मंजिल बदल गई।
सारांश : लक्ष्यकी ओर बढ़ें तो दिशा बदलनी नहीं चाहिए। देश, काल, परिस्थिति से रास्ता बदलता है। गंतव्य नहीं बदलता। आत्ममुग्ध हों।
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