कभी–कभी ऐसा महसूस हो सकता है कि एक स्वस्थ जीवन शैली को बनाए रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है जो दैनिक जीवन की वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है। पूर्णकालिक नौकरी करना, अच्छा खाना, मैराथन के लिए ट्रेन करना, घर का बना हरा जूस बनाना, अपने परिवार / साथी के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना और हर दिन एक घंटे ध्यान करना कठिन है। बेशक, स्वस्थ जीवन इन सभी चीजों को शामिल कर सकता है (यदि आप इसे चाहते हैं), लेकिन इसे स्वास्थ्य और फिटनेस के भव्य प्रदर्शनों द्वारा परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है।
इतना स्वस्थ जीवन वास्तव में उन छोटी–छोटी चीजों से बना है जो हम रोजाना करते हैं – ऐसी चीजें जो इतनी छोटी हैं कि वे महत्वपूर्ण नहीं लगती हैं, लेकिन समय के साथ लगातार किया जाता है, बड़े परिणाम उत्पन्न करने के लिए जोड़ते हैं।
यहाँ वर्णित सरल उपायों, आवश्यक बातों, प्राकृतिक उपचार,योगासन आदि का अभ्यास प्राकृतिक चिकित्सालय में इनडोर या आउटडोर चिकित्सा व्यवस्था के अन्तर्गत चिकित्सा लेने वाले रोगियों को कराया जाता है ताकि वे इनका अनुकरण घर पर भी कर सकें।
11 Simple Wellness Tips for Healthy & Happy Living
सुबह की शुरुआत पानी से
प्रात: 5 बजे उठकर 1 या 2 गिलास, तांबे के बर्तन में रात भर रखा या स्वच्छ ताजा पानी पियें। दिन भर में दो–दो घन्टे के अन्तराल से एक–एक गिलास पानी कुल कम से कम 3 लिटर जरूर पियें।
व्यायाम
प्रातः उठकर शौचादि से निवृत्त होने के बाद कम से कम आधा घंटे तक तेज चाल से घूमें या जाँगिंग करें। योगासन, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार,खेलकूद, बागवानी, तैराकी आदि किसी भी कार्य में थोड़ा समय रोज लगाएँ।
भोजन
भोजन धीरे–धीरे खूब चबाकर शान्ति से मौन रहते हुए करें। अपनी खुराक दिन में कम से कम 7 घण्टे के अन्तराल से केवल दो समय ही भोजन करें। अनुसार खाना लें किन्तु ध्यान रखें कि आपका पेट 3/4 ही भरे. दिन में कम से कम 7 घंटे के अंतराल में केवल 2 समय ही भोजन करें।
दोनों समय भोजन का उचित समय है:
- प्रातः 11 से 12 बजे तक,
- सायं 6 से 7 बजे तक
अनाज, दाल व सूखे मेवों को रात भर भिगोकर काम में लें। भोजन का केवल 1/3 भाग ही अन्न और दालें होनी चाहिये बाकी 2/3 भाग हरी सब्जी हो । 20% पकाये हुये अन्न के साथ 80% अपक्व अन्न लें।
कम चर्बी (फैट) वाला तेल ही काम में लें, वह भी कम से कम मात्रा में । सन्तुलित मात्रा में कच्चा–अपक्व, अमृताहार (अंकुरित अन्न), पत्तेदार हरी सब्जियाँ, मौसम के अनुसार फल, सलाद, फलों का रस, एवं धनिये, पोदीने की चटनी का सेवन करें। पक्व भोजन में चोकर सहित गेहूँ के आटे की रोटी, बिना पालिश के चावल तथा सूप आदि लें। भोजन को यदि भाप के माध्यम से पकाया जाये तो उत्तम होगा। चाय की जगह शहद व नींबू का पानी, दूध की जगह दही/छाछ तथा चीनी की जगह गुड़ को प्राथमिकता दें।
आराम
दोनों समय खाने के बाद 10 से 15 मिनट वज्रासन में बैठे।
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सामान्यः
थोड़े सख्त बिस्तर पर सोयें तथा बहुत पतले तकिये का उपयोग करें। सोने से पहले अपनी सारी चिन्ताओं से मुक्त होकर शान्तचित्त हो जायें। अपनी बायीं करवट तथा पेट के बल (शिशु आसन में) सोने की आदत डालें। सोने व खाने के बीच कम से कम तीन घन्टे का अन्तराल रखें।
जरूरी:
गहरी साँस लें तथा हमेशा सीधे तन कर बैठे या चलें। दिन में दो बार शौच जाने एवं दो बार ठण्डे या ताजे पानी से स्नान करने की आदत डालें। स्नान करने के बाद पहले हाथों से मालिश करके जितना पानी सुखा सकें सुखा लें। फिर तौलिए से पोछे । दिन में दो बार प्रार्थना/ईश्वर का ध्यान करें। (एक बार प्रातः सूर्योदय से पहले तथा दोबारा रात को सोने से पहले)।
कम/सीमित करें
नमक, चीनी, मिर्च, मसाले, दालें, घी, आइसक्रीम, पका भोजन, आलू आदि । ऊँची एड़ी की चप्पल/ जूते, टी.वी. व सिनेमा, मोटापा व थका देने वाले व्यायाम से बचें।
दूर करें/रहें
- धूम्रपान, चाय, कॉफी, शराब, दवा व अन्य बुरी आदतें । मैदा व पॉलिश किये हुए चावल, मांसाहार, डिब्बा बन्द, सुखाये हुए, मिलावटी, रंगयुक्त, सुगन्धयुक्त, सिन्थेटिक कृत्रिम खाद्य पदार्थ ।
- वनस्पति घी, सभी तरह के रिफाइन्ड तेल । कोई भी अप्राकृतिक भोजन या पेय । बिना भूख, बिना मन, चिन्तित अवस्था या बुखार में भोजन । बहुत गर्म या बहुत ठण्डा भोजन या पेय पदार्थ । शोरगुल, हवा, पानी आदि के प्रदूषण । नुकसानदायक प्रसाधन सामग्री, कृत्रिम वस्त्र, साबुन, इन्टीमेट आदि।
- भोजन के बीच पानी पीना । (भोजन के आधा घन्टा पहले तथा एक घण्टा बाद ही पानी पियें)।
- सोने के लिये नींद की गोली लेना । (यदि रात को नींद न आये तो एक तौलिये को ठण्डे पानी में निचोड़ कर 6″ x 9″ की गद्दी की तरह बनाकर पेट पर रख लें। ऊपर से ऊनी कपड़े से ढक लें। नींद आ जायेगी। देर रात खाना, भारी व तला खाना, देर रात तक जागना त्याग दें।
दाँतों का स्वास्थ्य
- भोजन के बाद दाँतों को पानी से अच्छी तरह से कुल्ला करके साफ कर लें।
- सुबह और रात्रि दोनों समय दातून करें।
- प्रतिदिन कुछ कड़ी वस्तुएँ जैसे गाजर, मूली, नारियल, भुट्टे, गन्ने, सौंफ, तिल आदि चबा– चबा कर खाएँ।
- यथेष्ट मात्रा में विटामिन और खनिज लवण की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन नींबू, नारंगी, आँवला, पपीता, अमरूद, टमाटर, गाजर, अमृताहार (अंकुरित अनाज), पालक, मेथी आदि का सेवन करें।
- दाँतों में पस आता हो या पायरिया हो तो सुबह, दोपहर, शाम नीम की दस–दस पत्तियाँ चबायें ।
- दाँतों में तकलीफ की स्थिति में पेट की सफाई करें एवं कुछ दिन फलाहार करें।
आदत डालें
- दिन में एक बार नमक के गुनगुने पानी से गरारे करना । सुबह व साय त्रिफला के पानी से आँखों को धोना ।(इससे नेत्र ज्योति बढ़ेगी)।
- सप्ताह में एक बार कुंजल (निवाया पानी पीकर उल्टी करना)।
- कब्ज हो तो एनिमा लेना । सप्ताह में एक बार शरीर की मालिश व धूप या भापस्नान।
- प्रतिदिन मुँह के तालू की हाथ के अंगूठे से धीरे–धीरे मालिश करें। मुँह में पानी भरकर चेहरे व आँखों पर पानी के छपाके मारें एवं कुछ समय हंसने व गाने में अवश्य बिताएं।
सावधानी
- फलो व सब्जियों पर रासायनिक खाद व दवाओं का छिड़काव होता है, उपयोग करने से पूर्व इन्हें कई बार अच्छी तरह से धो लें।
- जहाँ तक संभव हो, फल व सब्जियों को छिलके सहित काम में लें।
- यदि टी.वी. देखना हो तो पर्याप्त दूरी से देखें।
सीखें
- जल्दी सोना, जल्दी उठना । सप्ताह में कम से कम एक दिन उपवास रखना। उपवास के दिन अधिक से अधिक पीना । केवल फलों का रस व नीबू शहद पानी लेना।
- माह में एक दिन प्राकृतिक उपचार यानि मिट्टी की पट्टी, एनिमा, मालिश, धूप या भाप स्नान लेना । इससे तन व मन दोनों की शुद्धि हो जायेगी।
- वर्ष में एक सप्ताह पूर्ण प्राकृतिक उपचार।
- जीने के लिए भोजन करेंन कि भोजन के लिये जियें।
- बीमारी के मुक्ति के बाद स्वस्थ रहने के लिये प्राकृतिक जीवन जीना चाहिए।
सैद्धान्तिक बातें
- जीवन की जरूरी आवश्यकताएँ: पर्याप्त जगह, स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी, धूप,शारीरिक कार्य, सात्त्विक भोजन ।
- अधिक दवाएं लेना बीमारी से ज्यादा खतरनाक है।
- जो लोग संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम व पर्याप्त आराम (नींद)
- करते हैं, प्रायः बीमार नहीं होते।
- उपवास बीमारी से मुक्ति के लिये एक मुख्य साधन है। पशु भी बीमारी में भोजन त्याग देते हैं।
- जल्दबाजी, चिन्ता एवं गरिष्ठ व चटपटा भोजन बीमारी के मुख्य कारण हैं।
सुखी जीवन के लिये
खुश रहो, खुशियाँ बाँटो । याद रहे, जो देंगे वही मिलेगा। हमेशा सजग रहें, अपने कर्तव्य के प्रति, अपने दोषों के प्रति, अपनी गैर जरूरी इच्छाओं के प्रति, अपने मूल स्वरूप के प्रति । सुख वस्तु विशेष में नहीं, सन्तुष्ट रहने में है। महत्वाकांक्षा सभी में होती है परन्तु अति महत्वाकांक्षी होना असन्तोष को जन्म देता है। निष्काम कर्म करने की आदत डालें। यह सुखी जीवन की कुंजी है। जो भी होगा उसकी रजा से होगा, फिर चिन्तित होने का क्या प्रयोजन है ?
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